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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रत्याख्यान परिणा-सूत्र ३३६ ( १ ) फासियं ( स्पृष्ट अथवा स्पर्शित ) गुरुदेव से या स्वयं विधिपूर्व प्रत्याख्यान लेना । " ( २ ) पालियं ( पालित ) प्रत्याख्यान को बार-बार उपयोग में लाकर सावधानी के साथ उसकी सतत रक्षा करना । ( ३ ) सोहियं ( शोधित) कोई दूषण लग जाय तो सहसा उसकी शुद्धि करना । अथवा 'सोहिय' का संस्कृत रूप शोभित भी होता है । इस दशा में अर्थ होगा--- २ गुरुजनों को, साथियों को अथवा अतिथिजनों को भोजन देकर स्वयं भोजन करना । ( ४ ) तीरियं ( तीरित) लिए हुए प्रत्याख्यान का समय पूरा हो जाने पर भी कुछ समय ठहर कर भोजन करना | ( १ ) किट्टियं ( कीर्तित ) भोजन प्रारंभ करने से पहले लिए हुए प्रत्याख्यान को विचार कर उत्कीर्तन पूर्वक कहना कि मैंने अमुक प्रत्याख्यान अमुक रूप से ग्रहण किया था, वह भली भाँति पूर्ण होगया है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (६) राहियं ( आराधित सब दोषों से सर्वथा दूर रहते हुए ऊपर कही हुई विधि के अनुसार प्रत्याख्यान की आराधना करना । साधारण मनुष्य सर्वथा भ्रान्ति रहित नहीं हो सकता | वह साधना 1 १ – 'प्रत्या त्यान ग्रहणकाले विधिना प्राप्तम् ।' - प्रवचन सारोद्धार वृत्ति । आचार्य हरिभद्र फासियं का अर्थ 'स्वीकृत प्रत्याख्यान को बीच में खण्डित न करते हुए शुद्ध भावना से पालन करना' करते हैं । 'फासिय नाम जं अंतरा न खंडेति ।" आवश्यक चूर्णि २- शोभितं गुर्वादि प्रदत्तशेष भोजन (SSसेवनेन राजितम् ।' - प्रवचन सारोबार वृत्ति । 'सोभितं' नाम जो भत्तपाणं श्रण ेत्ता पुव दाऊण सेसं भुजति दायव्वपरिणामेण वा, जदि पुरा एक्कतो भुजति ताहे ण सोहियं भचति ।' – आचार्य जिनदासकृत आवश्यक चूर्णिं For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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