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एक स्थान-सूत्र
प्रागार नहीं है, तब हाथ और मुख का चालन भी कैसे हो सकता है ? समाधान है कि एक स्थान में एक बार भोजन करने का विधान है।
और भोजन हाथ तथा मुख की चलन-क्रिया के बिना अशक्य है। अतः अशक्य-परिहार होने से दाहिने हाथ और मुख की चलन क्रिया अप्रतिषिद्ध है। 'मुखस्य हस्तस्य च अशक्यपरिहारत्वाञ्चलनमप्रतिषिद्धमिति ।।
-प्रवचन सारोद्धार वृत्ति । एक स्थान भी चतुर्विधाहार, त्रिविधाहार, एवं द्विविधाहार रूप से अनेक प्रकार का है । वर्तमान परंपरा के अनुसार हमने केवल त्रिविधाहार ही मूल पाठ में रक्खा है। यदि चतुर्विधाहार श्रादि करने हों तो एकाशन के विवेचन में कथित पद्धति के अनुसार पाठ-भेद करके किए जा सकते हैं। ___एक स्थान का महत्त्व तपश्चरण की दृष्टि से तो है ही; परन्तु शरीर की चंचलता हटा कर एकाग्र मनोवृत्ति से भोजन करने का और अधिक महत्त्व है। शरीर को निःस्पन्द-सा बना कर और तो क्या खाज भी न खुजला कर काय गुप्ति के साथ भोजन करना सहज नहीं है। ऐसी स्थिति में भोजन भी कम ही किया जाता है। - 'एक स्थान के प्रत्याख्यान पर से फलित होता है कि साधर्क को प्रत्येक क्रिया सावधानी के साथ संयम पूर्वक करनी चाहिए । संयम पूर्वक भुजिक्रिया करते हुए भी जीवन शुद्धि का मार्ग प्रशस्त बन सकता है और तप की आराधना हो सकती है।
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