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प्रतिज्ञा सूत्र देवता रहे हैं । यह तो वैदिक साहित्य का नमूना है। जैनधर्म का साहित्य तो भगवान ऋषभदेव के गुणगान से सर्वथा श्रोत प्रोत है ही। प्रत्येक पाठक इस बात से परिचित है, अतः जैन ग्रन्थों से उद्धरण देकर व्यर्थ ही लेग्व का कलेवर क्यों बढ़ाया जाय ? भगवान् महावीर
अाज भगवान् महावीर को कौन नहीं जानता ? अाज से अढ़ाई हजार वर्ष पहले भारतवर्ष में कितना भयंकर अज्ञान था, कितना तीव्र पाखण्ड था, कितना धर्म के नाम पर अत्याचार था ? इतिहास का प्रत्येक विद्यार्थी उस समय के यज्ञादि में होने वाले भयंकर हिंसा काण्डों से परिचित है । भगवान् महावीर ने ही उस समय अहिंसा धर्म की दुन्दुभि बजाई थीं। कितने कष्ट सहे, कितनी आपत्तियाँ झेली; किन्तु भारत की काया पलट कर ही दी। श्राध्यात्मिक क्रान्ति का सिंहनाद भारत के कोने-कोने में गूंज उठा ! भगवान महावीर का ऋण भारतवर्ष पर अनन्त है, असीम है ! आज हम किसी भी प्रकार से उनका ऋण अदा नहीं कर सकते। प्रभु की सेवा के लिए हमारे पास क्या है ?
और वे हम से चाहते भी तो कुछ नहीं। उनके सेवक किंवा अनुयायी होने के नाते हमारा इतना ही कर्तव्य है कि हम उनके बताए हुए सदाचार के पथ पर चले और श्रद्धा भक्ति के साथ मस्तक झुकाकर उनके श्रीचरणों में वन्दन करें। ___ भगवान महावीर का नाम पूर्णतया अन्धर्थक है । साधक जीवन के लिए आपके नाम से हो बड़ी भारी प्राध्यात्मिक प्रेरणा मिलती है। एक प्राचीन आचार्य भगवान के 'वीर' नाम की व्युत्पत्ति करते हुए बड़ी ही भव्य-कल्पना करते हैं--- विदारयति यत्कर्म,
तपसा च विराजते ।
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