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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रमण-सूत्र अभं = अब्रह्मचर्य को परियागामि = जानता हूँ और परियाणामि = जानता हूँ और त्यागता हूँ त्यागता हूँ बोहिं - बोधि को बंभं - ब्रह्मचर्य को उयम पजामि = स्वीकार करता हूँ उवस पजामि = स्वीकार करता हूँ मग्गं = अमाग को अकर्ष = अकल्प = अकृत्य को परियाणामि-जानता हूँ, त्यागता हूँ परियागामि जानता हूँ, त्यागता मग्गं =माग को उवम पजामि = स्वीकार करता हूँ कप = कल्प = कृत्य को जं-जो उधमपबामि = स्वीकार करता हूँ सभरामि = स्मरण करता हूँ च = और अन्नाण= अज्ञान को परियाणामि = जानता हूँ और जं = जो त्यागता हूँ न = नहीं समरामि = स्मरण करता हूँ नाणं = ज्ञान को जं - जिसका उपस पजामि = स्वीकार करता हूँ पडिकमामि = प्रतिक्रमण करता हूँ अकिरियं - अक्रिया को च - और परियाण मि = जानता हूँ एवं जं जिसका त्यागता हूँ न- नहीं किरियं = किया को __ पडिकमामि : प्रतिक्रमण करता हूँ उवस पजामि = स्वीकार करता हूँ। तस्स - उस मिच्छत्त= मिथ्यात्व को सव्यत्म-सब पारेप्राणामि = जानता हूँ तथा देवसियस्म = दिवस सम्बन्धी त्यागता हूँ अइपारस्स = अतिचार का सम्मत्त = सम्यक्त्व को पडिक्कमामि = प्रतिक्रमण करता हूँ उवस पजामि = स्वीकार करता हूँ समणोई = मैं श्रमण हूँ अबोहि = अबोधि को सजय - संयमी हूँ . For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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