________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
१२८८
प्रतिज्ञा-सूत्र
नमो चवीसाए तित्थगराणं उसभादि - महावीर पज्जवसागाणं । इमे निम्गंथं पावय गं,
सच्च, अणुत्तरं, केवलियं, पडिपुराणं, नेउयं, संसुद्ध, सल्लगत्तणं, सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं, निज्जाणमग्गं, निव्वाणमगं, अवितहमविसंधि, सव्यदुक्खप्यहीणमग्गं । इत्थं ठिया जीवा, सिज्यंति बुज्कंति, मुच्चंति, परिनिव्वायंति सच्चदुक्खाणमंतं करेंति ।
तं धम्मं सदहामि पत्तिभि, रोएभि, फासेमि, पालेमि, पामि ।
तं धम्मं सदहंतो, पत्तितो, अंतो, फासतो, पालंतो" अणुपालतो ।
१ आचार्य जिनदास महत्तर और आचार्य हरिभद्र ने 'पालेमि' और 'पालन्ती' का उल्लेख नहीं किया है !
For Private And Personal