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श्रमण-सूत्र
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भीम-भवन्वन से निकाला बड़ी कोशिशों से,
मोक्ष के विशुद्ध राजमार्ग पैं चलाया है । संकट में धर्म-श्रद्धा ढीली-ढाली होने पर,
समझा-बुझा के दृढ़ साहस बँधाया है । कटुता का नहीं लेश सुधा-सी सरस वाणी, धर्म-प्रवचन नित्य प्रेम से सुनाया है । 'अमर' सभक्तिभाव बार-बार वन्दनार्थ, धर्मगुरु चरणों में मस्तक झुकाया है ॥
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