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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३६४ श्रमण-सूत्र अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं ॥२॥ धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंत-चक्कवट्टीणं ॥६॥ दीव-ताण-सरण-गइ-पइट्ठाणं, अप्पडिहय-बरनाण-दंसणधराणं, वियदृछउमाणं ॥७॥ जिणाणं, जावयाणं, तिषणाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोयगाणं ॥८॥ सव्व-न्नूणं, सब-दरिसीणं, सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाह,मपुणरावित्ति-सिद्धिगइनामधेयं' ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जियभयाणं ॥४॥ शब्दार्थ नमोत्थुणं = नमस्कार हो स्थापना करने वाले अरिहंताणं अरिहन्त सयंसंबुद्धाणं = अपने श्राप ही भगवंताणं - भगवान् को । - सम्यक बोध को पाने वाले [भगवान् कैसे हैं ? ] पुरिसुत्तमाणं = पुरुषों में श्रेष्ठ अाइगराणं = धर्म की प्रादि करने पुरिससीहाणं = पुरुषों में सिंह वाले पुरिसवरपुंडरियाणं = पुरुषों में तित्थयराणं - धर्म तीर्थ की श्रेष्ठ श्वेतकमल के समान १-अरिहंत स्तुति में 'ठाणं संपत्ताणं' के स्थान पर 'ठाणं संपाविउ कामाणं, कहना चाहिए। For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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