________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
शेष-सूत्र
३६१ संभवं = संभव को
वन्दे = वन्दना करता हूँ अभिणंदणं च = और अभिनन्दन रिट्टनेमि =अरिष्टनेमि को " को
पासं = पार्श्वनाथ को सुमई च= और सुमति को तह = तथा पउमप्पहं = पद्मप्रभ को वद्धमाणं = वर्तमान स्वामी को सुपासं = सुपार्श्व को . वंदाभि - वन्दना करता हूँ च % और
एवं इस प्रकार चंदप्यहं = चन्द्रप्रभ
मए मेरे द्वारा जिणं = जिन को
अभिथुया = स्तुति किए गए वंदे = वन्दना करता हूँ विहुवरयमला= कर्मरूपी रज तथा सुविहिं च =और सुविधि, अर्थात्
मल से रहित पुःफदंतं = पुष्पदन्त को
पहीण जरमरणा = जरा और मरण सीअल =शीतल
से मुक्क सिज्जंस = श्रेयांस को वासुपुज्ज च = और वासुपूज्य को चउवीसंपि = ऐसे चौबीसों ही विमलं = विमल को
जिणवरा = जिनवर अणंतं च जिणं = और अनन्त तित्थयरा = तीर्थंकर देव
जिन को मे= मुझ पर धम्म = धर्मनाथ को
पसीयंतु - प्रसन्न होवें संतिं च = और शान्तिनाथ को जे जो वंदामि= वन्दना करता हूँ
ए-ये कुंथु - कुन्थुनाथ को
लोगस्स= लोक में अरं च - और अरनाथ को उत्तमा = उत्तन, मल्लि = मल्लि को
सिद्धा- तीर्थंकर सिद्ध भगवान मुणि सुव्वयं = मुनिसुव्रत को कित्तिय = वचन से कीर्तित, स्तुति च = और
.. किए गए नमिजिणं = नमि जिनको
For Private And Personal