________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
३१२
श्रमण-सूत्र
उसी समय भोजन करना छोड़ देना चाहिए । पौरुषी अपूर्ण जानकर भी भोजन करता रहे तो प्रत्याख्यान भंग का दोष लगता है। ___ पौरुषी के समान ही सार्ध पौरुपी का प्रत्याख्यान भी होता है। इसमें डेढ़ पहर दिन चढ़े तक अाहार का त्याग करना होता है । अस्तु, जब उक्त सार्ध पौरुषी का प्रत्याख्यान करना हो तब 'पोरिसिं' के स्थान पर 'साढ पोरिसिं' पाट कहना चाहिए।
आज कल के कुछ लेखक पौरुषी के पाट में 'महत्तरागारेणं' का पाठ बोलकर छह की जगह सात अागार का उल्लेख करते हैं; यह भ्रान्ति पर अवलम्बित हैं । हरिभद्र श्रादि प्राचार्यों की प्राचीन परंपरा, पौरुषी में केवल छह ही अागार मानने की है । __ साधु सशक्त हो तो उसे पौरुषी आदि चउविहार ही करने चाहिएँ । यदि शक्ति न हो तो तिविहार भी कर सकता है। परन्तु दुविहार पौरुषी कदापि नहीं कर सकता। हाँ, श्रावक दुविहार भी कर सकता है। इसके लिए प्राचार्य देवेन्द्र कृत श्राद्ध प्रतिक्रमण वृत्ति देखनी चाहिए।
यदि पौरुषी तिविहार करनी हो तो 'तिवि हं पि श्राहारं असणं, खाइम, साइमं पाठ बोलना चाहिए । यदि श्रावक दुविहार पौरुषी करे तो 'दुविहंपि माहारं असणं खाइमं ऐसा पाट बोलना चाहिए।
For Private And Personal