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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१४ समणोऽहं संजय - विरय-पडिय-पच्चक्खाय-पावकम्मो, अनियाणो, दिट्टिसंपन्नो, माया - मोस - विवज्जियो । = www.kobatirth.org श्रमण-सूत्र चड्ढाइज्जेसु दीद ( १ ) जावंत के वि साहू, समुदे पनरससु कम्मभूमी । पावयण == प्रवचन सच्चं = सत्य है पंचमहव्यय-धारा = नमस्कार हो नमो चवीसाए = चौबीस तित्थगराण = तीर्थंकरों को उसभादि = ऋषभ आदि महावीर = महावीर पज्जवसारणाण = पर्यन्तों को रयहरण- गुच्छ - पडिग्गह-धारा ।। ( २ ) इणमेव = यह ही निग्गंथ: निर्ग्रन्थों का अक्खयायारचरिता, Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अड्ढार - सहस्स - सीलंगवारा । ते सच्चे सिरसा मासा मत्थरण वंदामि || शब्दार्थ श्रणुत्तरं = सर्वोत्तम है केवलियं = सर्वज्ञ-प्ररूपित अथवा श्रद्वितीय है परिपुगण = प्रतिपूर्ण है नेप्राउयं = न्यायावाधित है, मोक्ष ले जाने वाला है मसुद्ध = पूर्ण शुद्ध है मल्ल = शल्यों को गत्तण = काटने वाला है For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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