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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १६२ श्रमण-सूत्र पापश्रुत के २६ भेद (१) भौम = भूमिकंध आदि का फल बताने वाला शास्त्र । (२) उत्पात = रुधिर वृष्टि, दिशाओं का लाल होना इत्यादि का शुभाशुभ फल बताने वाला निमित्त शास्त्र । ( ३ ) स्वप्न-शास्त्र । ( ४ ) अन्तरिक्ष = आकाश में होने वाले ग्रहबेध ग्रादि का वर्णन करने वाला शास्त्र । (५ . अंगशास्त्र = शरीर के स्पन्दन श्रादि का फल कहने वाला शास्त्र । (६) स्वर शास्त्र । ( ७ ) व्यञ्जन शास्त्र = तिल, मष ग्रादि का वर्णन करने वाला शास्त्र । (८) लक्षण शास्त्र - स्त्री पुरुषों के लवणों का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र । ये आठों ही सूत्र, वृत्ति, और वार्तिक के भेद से चौबीस शास्त्र हो जाते हैं । (२५) विकथानुयोग - अर्थ और काम के उपायों को बताने वाले शास्त्र, जैसे वाल्यायनकृत काम सूत्र आदि । (२६) विद्यानुयोग = रोहिणी आदि विद्यायों की सिद्धि के उपाय बताने वाले शास्त्र । ( २७ ) मन्त्रानुयोग = मन्त्र आदि के द्वारा कार्यसिद्धि बताने वाले शास्त्र । (२८) योगानु योग : वशीकरण प्रादि योग बताने वाले शास्त्र । ( २६ ) अन्यतीथिकानुयोग = अन्यतीर्थिकों द्वारा प्रवर्तित एवं अभिमत हिंसा प्रधान श्राचार-शास्त्र । [ समवायांग ] For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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