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मानव-जीवन का महत्त्व जब हम अपनी आँखें खोलते हैं और इधर-उधर देखने का प्रयत्न करते हैं तो हमारे चारों ओर एक विराट संसार फैला दिखलाई पड़ता है । बड़े-बड़े नगर बसे हुए हैं और उनमें खासा अच्छा तूफान जीवनसंघर्ष के नाम पर चलता रहता है । दूर-दूर तक विशाल जंगल और मैदान हैं, जिनमें हज़ारों लाखों वन्य पशु पक्षी अपने क्षुद्र जीवन की मोह-माया में उलझे रहते हैं । ऊँचे-ऊँचे पहाड़ हैं, नदी नाले हैं, झील हैं, समुद्र हैं, सर्वत्र असंख्य जीव-जन्तु अपनी जीवन यात्रा की दौड़ लगा रहे हैं । ऊपर आकाश की ओर देखते हैं तो वहाँ भी सूर्य, चन्द्र नक्षत्र और तारों का उज्ज्वल चमकता हुआ संसार दिन-रात अविराम गति से उदय-अस्त की परिक्रमा देने में लगा हुआ है।
यह संसार इतना ही नहीं है, जितना कि हम आँखों से देख रहे हैं या इधर-उधर कानों से सुन रहे हैं। हमारे आँख, कान, नाक, जीभ
और चमड़े की जानकारी सीमित है, अत्यन्त सीमित है। आखिर हमारी इन्द्रियाँ क्या कुछ जान सकती हैं ? जब हम शास्त्रों को उठाकर देखते हैं तो आश्चर्य में रह जाते हैं । असंख्य द्वीप समुद्र, असंख्य नारक
और असंख्य देवी देवताओं का संसार हम कहाँ आँखों से देख पाते हैं ? उनका पता तो शास्त्र द्वारा ही लगता है। अहो कितनी बड़ी है यह दुनिया !
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