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लेश्या- सूत्र
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सुगन्ध देने वाला होता है । इसका मन शान्त, निश्चल एवं अशुभ प्रवृत्तियों को रोकने वाला होता है । पाप से भय खाता है, मोह और शौक पर विजय प्राप्त करता है । क्रोध, मान यादि का अधिकांश में क्षीण एवं शान्त हो जाते हैं। वह मितभाषी, सौम्य, जितेन्द्रिय होता है । शुक्ल लेश्या
यह मनोवृत्ति सबसे अधिक विशुद्ध होने के कारण शुक्त कहलाती है । यह अपने सुखों के प्रति लापरवाह होता है । शरीर निर्वाहमात्र हार ग्रहण करता है । किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देता । श्रासक्तिरहित होकर सतत समभाव रखता है । राग-द्व ेष की परिणति हटाकर वीतराग भाव धारण करता है ।
प्रथम की तीन वृत्तियाँ व्याज्य हैं और बाद की तीन वृत्तियाँ उपादेय हैं । अन्तिम शुक् लेश्या के विना ग्रात्मविकाश की पूर्णता का होना सम्भव है । जीवन-शुद्धि के पथ में धर्म लेश्या का आचरण किया हो और धर्मलेश्याओं का श्राचरण न किया हो तो प्रस्तुत-सूत्र के द्वारा उसका प्रतिक्रमण किया जाता है ।
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