________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
जीवनिकाय सूत्र
१५५
जन्ममरण से मुक्ति पाने के लिए (६) आरोग्य, सुख तथा शान्ति पाने
के लिए ।
जैन मुनि के लिए सर्वथा जीवहिंसा का त्याग होता है । वह किसी जीव को किसी भी कारण से पीड़ा नहीं देता । एक बात और भी है । दूसरे धर्म, हिंसा के केवल स्थूल रूप तक ही पहुँचे हैं, जब कि जैनधर्म का मुनि धर्म हिंसा की सूक्ष्म से सूक्ष्म तह तक पहुँचा है । पृथिवी, जल जैसे सूक्ष्म जीवों के प्रति भी वह उसी प्रकार सदय रहता है, जिस प्रकार संसारी जीव मित्र स्वजनों के प्रति । इस लिए मुनि को छह काय का पीहर कहा जाता है ।
प्रस्तुत सूत्र में लहों प्रकार के जीवसमूह को किसी भी प्रकार की प्रमाद वश पीडा पहुँचायी हो, उसका प्रतिक्रमण किया गया है। हिंसा के प्रति कितनी अधिक जागरूकता है !
For Private And Personal