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गौरव - सूत्र
पडिक्कमामि तिहिं गारवेहिंइड्ढी - गारवे,
रस- गारवे सायागारवेणं
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शब्दार्थ
पडिक्कमामि= प्रतिक्रमण करता हूँ हट्टीगारवेणं = ऋद्धि गौरव से तिहिं = तीनों रसगारवेणं = रस गौरव से सायागारवेणं = साता गौरब से
गारवेहिं = गौरवों से
भावार्थ
तीन प्रकार के गौरव = अशुभ भावनारूप भार से लगने वाले दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ । [ किन गौरवों से ?] ऋद्धि के गौरव से, रस के गौरव से, और साता = सुख के गौरव से ।
विवेचन
गौरव का अर्थ गुरुत्व है । यह गौरव, द्रव्य और भाव से दो प्रकार का होता है । पत्थर आदि की गुरुता, द्रव्य गौरव है और अभिमान एवं
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