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असयम सूत्र
___ सयम का विरोधी असयम है । यही समस्त सांसारिक दुःखों का मूल है । चारित्र मोहनीय कम के उदय से होने वाले रागद्वेष रूप कषाय भाव का नाम असयम है । असयम के होने पर आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप में परिणति नहीं करता. सदाचार में प्रवृत्ति नहीं करता। असयमी की दृष्टि बहिर्मुखी होती है, अतः वह पुद्गल-वासना को ही श्रेय समझने लगता है। अतएव प्रस्तुत सूत्र में असंयम के प्रतिक्रमण का यह भाव है कि-सयम-पथ पर चलते हुए यदि कहीं भी प्रमादवश असयम हो गया हो, अन्तहदय साधना पथ से भटक गया हो, तो वहाँ से हटाकर पुनः उसे आत्म-स्वरूप में केन्द्रित करता हूँ।
संग्रहनय की दृष्टि से सब प्रकार के असंयमों का सामान्यतः एक असयम पद से ग्रहण कर लिया है। आगे आने वाले सूत्रों में विशेष रूप से असयमों का नामोल्लेख किया गया है। __ प्राचीन प्रतियों में एक विध असंयम से लेकर अन्तिम 'मिच्छामि दुकडं' तक एक ही पाठ माना है। यह मानना है भी ठीक अतएव यहाँ से लेकर, सत्र सूत्रों का सम्बन्ध अन्तिम 'मिच्छामि दुक्कडं' से किया जाता है। यहाँ पृथक्-पृथक् सूत्रों का विभाग, केवल विषयावबोध की रष्टि से किया गया है। सूत्र का क्रम भंग करना अपना उद्देश्य नहीं है।
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