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असंयम-सूत्र पडिक्कमामि एगविहे असंजमे
शब्दार्थ पडिकमामिप्रतिक्रमण करता हूँ, एगविहे = एक प्रकार के निवृत्त होता हूँ अस'जमे= असंयम से
भावार्थ अविरतिरूप एक-विध असंयम का आचरण करने से जो भी अतिचार-दोष लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ।
विवेचन मनुष्य क्या है ? इसका उत्तर कविता की भाषा में है-'कामनाओं का समुद्र ।' ससारी मनुष्य की कामनाएँ अनन्त हैं। कौन क्या प्राप्त नहीं करना चाहता ? जिस प्रकार समुद्र में हजारों, लाखों, करोड़ों तरंगे
१-'संजमो सम्म उवरमो।' इति जिनदास महत्तराः ।
'असंयमे अविरतलक्षणे सति प्रतिषिद्धकरणादिना यो मया दैवसिकोऽतिचारः कृत इति गम्यते' इत्याचार्य हरिभद्राः ।
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