________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
८५
गोचरचर्या सूत्र भोजन लाने के बाद जब तक गुरुचरणों में अथवा भगवान् की साक्षी से गोचरचर्या का पालोचन अथ च प्रतिक्रमण नहीं कर लिया जाता, तब तक भोजन नहीं खाया जा सकता । यह नियम गुरुदेव के समक्ष गोचरचर्या की रिपोर्ट देने के लिए है कि-किसके यहाँ से, किस तरह से, कितना, और कैसा भोजन लिया गया है ? यदि कहीं गोचरी में भूल मालूम पड़े तो उसके प्रतिकारस्वरूप प्रायश्चित्त ग्रहण करना होता है।
उपर्युक्त लम्बा विवेचन लिखने का मेरा उद्देश्य यह है कि जैनसाधु की भिक्षावृत्ति, भीख माँगना नहीं है। यहाँ भिक्षावृत्ति में जीवन के महान श्रादर्शों को भुलाया नहीं जाता; प्रत्युत उन्हें और अधिक दृढ़ किया जाता है। भिक्षा महान् आदर्श है-यदि उससे वास्तविक लाभ उठाया जाय तो । कौन घर कैसा है ? उसका प्राचार विचार क्या है ? जीवन की उच्च संस्कृति का उत्थान हो रहा है अथवा पतन ? कौन व्यसन कहाँ किस रूप में घुसा हुअा है ? इत्यादि सब प्रश्नों का उत्तर साधु को भिक्षा के द्वारा मिल सकता है और यदि वह समर्थ हो तो तदनुसार उपदेश देकर जनता का कल्याण भी कर सकता है। जैनधर्म में भिक्षाचर्या स्वयं एक तपस्या है। वह जीवन की पवित्रता का महान मार्ग है।
अाजकल भिक्षा के विरुद्ध जो अान्दोलन चल रहा है, उसके साथ यह भी विचार करना आवश्यक है कि-कौन किस तरह मिक्षा माँग रहा है ? सबको एक लाठी से नहीं हाँका जा सकता। यद्यपि यह ठीक है कि आज राष्ट्र में बेकार भिखमगों का दल ज़ोर पकड़ गया है। हजारों लाखों साधुनामधारी आज देश के लिए अभिशाप सिद्ध हो रहे हैं । प्राचार्य हरिभद्र ऐसे मनुष्यों की भिक्षा को पौरुषत्री बतलाते हैं, वह अवश्य ही निषिद्ध भिक्षा है। भिक्षाष्टक में प्राचार्य ने तीन प्रकार की भिक्षा बतलाई है-सर्व समत्करी, पौरुषघ्नी और वृत्तिभिक्षा । सर्व सम्बरकरी भिक्षा त्यागी विसगाला साधु मुनिराजों की होती है।
For Private And Personal