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* भाषा-टोका-सहितम् के अमुष्य त्वत्सेवा समधिगतसारं भुजवनम् बलात्कैलासेऽपि त्वदधिवसतौ विक्रमयतः । अलभ्या पातालेऽप्यलसचलिताङ्गुष्टशिरसि प्रतिष्ठा त्वय्यासीद् ध्रुवमुपचितो मुह्यति खलः ॥१२॥
रावण ने उन्हीं भुजाओं से जिन्होंने आपकी सेवा से बल प्राप्त किया था आपके घर कैलास को उखाड़ने के लिये हठात् प्रयोग करते ही आपके अंगूठे के अग्रभाग के संकेत मात्रसे पातालमें जा गिरा.निश्चय ही खल उपकारको भूल जाते हैं।॥१२॥ यदृद्धिं सुत्राम्णो वरद ! परमोच्चैरपि सतीमधश्चक्रे बाणः परिजनविधेयास्त्रभुवनः । न तच्चित्रं तस्मिन् वरिवसितरि त्वच्चरणयोः न कस्याप्युन्नत्यै भवति शिरसस्त्वय्यवनतिः॥१३॥ ___हे वरद ! बाणासुर ने आपके नमस्कार मात्र से इन्द्रकी सम्पत्ति को नीचा दिखलाने वाली सम्पत्ति प्राप्त किया था और त्रिभुवन को अपना परिजन बना लिया था। यह आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि आपके चरणों में नमस्कार करना किस उन्नति का कारण नहीं होता ॥ १३ ॥
अकाण्ड-ब्रह्माण्ड-क्षयचकितदेवासुरकृपा विधेयस्याऽऽसीद्यस्त्रिनयनविषं संहृतवतः ।
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