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* श्रीगणेशाय नमः ॐ
शिवमहिम्नस्तोत्रम
महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः। अथावाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन् ममाप्येषः स्तोत्रे हर ! निरपवादः परिकरः ॥१॥ __ हे हर ! ( सभी दुःखों के हरने वाले ) आपकी महिम अन्तको न जानने वाले मुझ अज्ञानी से की गई स्तुति य आपकी महिमा के अनुकूल न हो तो कोई आश्चर्य की व नहीं है। क्योंकि ब्रह्मा आदि मी आपकी महिमा के अन्त नहीं जानते हैं । अतः उनकी स्तुति भी आपके योग्य नहीं “सा वाग् यया तस्य गुणान् गृणीते" के अनुसार यथा म मेरी स्तुति उचित ही । क्योंकि-"नमः पतन्त्यात्मसमं । त्रिणः" इस न्याय से मेरी स्तुति आरम्भ करना क्षम्य हो ।
अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयोरतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि ।
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