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* भाषा-टीका-सहितम् * - स्वयं शारदा सर्वदा लिखती रहें तथापि आपके गुणों का पार नहीं पा सकतीं, तो मै कौन हूँ ? ॥ ३२ ॥ असुरसुरमुनीन्द्ररचितस्येन्दु मौले-. प्रथितगुणमहिम्नो निर्गुणस्येश्वरस्य । सकलगुणवरिष्ठः पुष्पदन्ताभिधानो रुचिरमलघुवृत्चैः स्तोत्रमेतचकार ।। ३३ ॥
अमुर, सुर और मुनियों से पूजित तथा विख्यात महिमा वाले ऐसे ईश्वर चन्द्रमौलि के इस स्तोत्र को अलधुवृत्त अर्थात् बड़े (शिखरिणी ) वृत्त में सकल गुण श्रेष्ठ पुष्पदन्त नामक गन्धर्व ने बनाया है ॥ ३३ ॥ अहरहरनवा धूर्जटः स्तोत्रमेतत्पठति परमभक्त्या शुद्धचित्तः पुमान्यः॥ स भवति शिवलोके रुद्रतुल्यस्तथाऽत्र प्रचुरतरधनायुः पुत्रवान्कीर्तिमांश्च ॥३४॥
शुद्धचित्त होकर अनवद्य महादेवजी के स्तोत्र को जो पुरुष प्रतिदिन परम भक्ति से पड़ता है वह इस लोक में धन-धान्य तथा आयुयुत, पुत्रवान् और कीर्तिमान होता है और अन्त में शिवलोक में शिवस्मरूप हो जाता है ॥३५॥
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