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* शिवमहिम्नस्तोत्रम् *
आपको बार-बार नमस्कार है। तीनों गुणों (सत्व, रज, तम ) से परे अनिर्वचनीय पद से विशिष्ट आपको बार-बार नमस्कार है ||३०||
कृश परिणतिचेतः
क्लेशवश्यं कचेदम्
व च तव गुणसीमोल्लङ्घिनी शखदृद्धिः । इति चकितममन्दीकृत्य मां भक्तिराधाद् वरद ! चरणयोस्ते वाक्यपुष्पोपहारम् ||३१||
हे वरद ! कहाँ तो रागद्वेष आदि से कलुषित तथा तुच्छ मेरा मन, कहाँ आपकी अपरिमित विभूति, तिसपर भी आपकी भक्तिने मुझे निर्भय बनाकर इसी वाक्रूपी पुष्पाञ्जलिको आपके चरण कमलों में समर्पण करने के लिए बाध्य किया ||३१|| असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे लेखनीपत्रमुर्वी ।
सुरतरुवरशाखा लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालम् तदपि तव गुणानामीश ! पारं न याति ||३२|| हे ईश ! असित अर्थात् काले पर्वत के समान यदि कज्जल ( स्याही ) समुद्र पात्र में हो, सुरवर ( कल्पवृक्ष ) की शाखा को उत्तम लेखनी हो और पृथ्वी कागज हो तो इन साधनों को लेकर स्वयं शारदा सर्वदा लिखती रहें तथापि आप के गुणों का पार नहीं पा सकतीं, तो मैं कौन हूँ ? ||३२||
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