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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२ शत्रुजयतीर्थोद्धारप्रबन्ध का wwwwwwwww से समुद्रपर्यंत की पृथ्वी को खाज्ञाधीन किया था। उस नृपश्रेष्ठ के शौर्य, औदार्य और धैर्य आदि गुणों को देख कर तथा चतुरंग शैन्य की विभूति देख कर लोक उसे नया चक्रवर्ती मानते थे। इस चित्रकोट नगर में, ओसवंश (ओसवाल ज्ञाति) में सारणदेव नामक एक प्रसिद्ध पुरुष हो गया है जो जैन नृपति आमराज* * आमराज, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य बप्पभट्टि का शिष्य था । बप्पभट्टि का जीवन चरित्र प्रभावकचरित्र' आदि कई ग्रंथों में मिलता है। · गौडवध' नामक प्राकृतकाव्य के कर्ता कवि वाक्यति और बप्पभट्टि समकालीन थे। आमराज कान्यकुब्ज का अधिपति था । गौडपति प्रसिद्धनपति धर्मपाल-जो पालवंश का प्रतिष्ठाता पुरुष था-आमराज का समसामयिक था । बंगाल के प्रख्यात लेखक और विश्वकोष के कर्ता श्रीयुक्त नागेन्द्रनाथ वसु प्राच्यविद्यार्णव का 'लखनउ की उत्पत्ति' नामक एक ऐतिहासिक लेख 'पाटलिपुत्र' के प्रथम भाग के कितनेक अंको में प्रकट हुआ है । इस लेख में, लेखक ने आमराज वगैरह के विषय में अच्छा प्रकाश डाला है । एक जगह लिखा है कि___ " जैनग्रन्थ के अनुसार आमराज के गुरु बप्पभट्टि ने ८९५ संवत् या सन् ८३८ में पंचानवे की अवस्था पर पञ्चत्व पाया था। ऐसी स्थिति में ८०० संवत् या सन् ७४३ ई. से सन् ८३८ ई. तक बप्पभट्टि के आविर्भाव का समय मानना पडता है। प्रबन्धकोष के मत से ८५१ संवत् या सन् ७९५ ई. में आमराज की ही प्रार्थना पर बप्पभाट्ट ने सूरि-पद पाया था। आमराज ने वृद्ध वयस में स्तम्भतीर्थ, गिरनार, प्रभास प्रभृति नाना तीर्थ घूम और ८९० संवत् या सन् . ८३४ ई. में मगधतीर्थ पहुंच प्राण छोडे । इस लिए मालूम होता है, कि सन् ७९५ से ८३४ ई. तक आमराज विद्यमान रहे । उधर गौड के पालराज वंश का इतिहास देखने से समझते हैं कि गौडाधिपति धर्मपाल ने सन् ७९५ से ८३४ ई. तक राजत्व चलाया था । ( — बङ्गेर-जातीय-इतिहास' के राजन्य काण्ड का २१६ वा पृष्ठ देखना चाहिए। ) इस लिए देखते हैं कि पालवंश के प्रकृत प्रतिष्ठाता महाराज धर्मपाल और कान्यकुब्जपति आमराज समसामयिक रहे ।" . -पाटलिपुत्र, माघशुक्ल १, सं. १९७१ । For Private and Personal Use Only
SR No.020705
Book TitleShatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1917
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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