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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐतिहासिक सार-भाग। rammmmmmmmmmm की प्रार्थना से, आबू वगैरह तीर्थों की यात्रा के लिये उस के संघ में चले । अनेक नगरों और गांवों में, संघ के साथ बडे भारी समारोह से प्रवेश करते हुए क्रमसे मेदपाट ( मेवाड ) देश में पहुंचे । भारत भामिनी के भूषण समान इस मेदपाट की क्या प्रशंसा की जाय ?-पैर पैरं पर जहां सरोवर, नदियें, वन और क्रीडापर्वत विद्यमान हैं । धन और धानसे जहां के शहर समृद्धिशाली बने हुए हैं। जहां न क्लेश का लेश है और न शत्रुका प्रवेश है । न दण्ड की भीति है और न लोकों में अनीति है । न कहीं दुर्जन का वास है और न कहीं दुर्व्यसन से किसी का विनाश है । इस सुन्दर देश में, जिसने अपनी ऋद्धि से त्रिकूट को भी नीचा दिखा दिया है ऐसा जगत्प्रसिद्ध चित्रकूट (चित्तोड) पर्वत है। इस पर्वत पर उन्नत और विशाल अनेक जिनमन्दिर बने हुए हैं जिन के रणरणाट करते हुए घंटनादों से सारा पर्वत शब्दायमान हो रहा है । चैत्यों के शिखरों पर स्थापित किये हुए सुवर्ण के देदीप्यमान कलश और बहुमूल्य वस्त्रों के बने हुए ध्वजपट, दूर ही से दृष्टिगोचर होने पर श्रद्धालुओं के पाप का प्रक्षालन करने लग जाते हैं । इस पर्वत पर अनेक साधुशालायें ( उपाश्रय ) बनी हुई हैं जिन में निरन्तर अहंदागमों का मधुरखर से जैनश्रमण स्वाध्याय करते रहते हैं । नगरनिवासी सभी मनुष्य आनन्द और विलास में निमग्न रहते हैं। कई रमणीय सरोवर, अपने मध्यमें रहे हुए कमलों के, पवनद्वारा ऊडे हुए परिमल से सुगन्धमय हो रहे हैं । उस समय इस प्रसिद्ध पर्वत का शासक क्षत्रियकुलदीपक साङ्गा महाराणा * था जो तीनलाख घोडों का मालिक था और जिसने अपने भुजाबल ___ * साझा महाराणा का शुद्ध-संस्कृत नाम संग्रामसिंह था। कर्नल टॉड के राजस्थानइतिहास में लिखे मुजिब, इसने विक्रम संवत् १५६५ से १५८६ तक राज्य किया था। For Private and Personal Use Only
SR No.020705
Book TitleShatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1917
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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