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( १४० )
अर्थ--इस प्रकार कहे हुवे मोक्ष प्राभृत को जो उत्तम भक्तिकर
पढ़े है श्रवण करे है भावना ( बार बार मनन ) करै है सो अविनश्वर सुख को पावे है ।
॥ इति श्री कुन्दुकुन्दखाभिविरचितं मोक्षप्राभूतं समाप्तम् ॥ ॥ समाप्तं च षट्प्राभृतम् ॥
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