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(२९) हेह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं णेइ हु अंतकाले ।
न तस्स माया न पिया न भाया, कालम्मि तम्मिसहरा भवन्ति ॥४३॥ जेम सिंह टोळामांथी मृगलाने पकडी लइ जायछे, तेम अन्तकाळे मृत्यु मनुष्यने पकडी लइ जाय छे. ते वखते माता पिता के भाइ कोइ पण एक क्षणमात्र पण रक्षण करवाने समर्थ थतुं नथी. सहु कोइ देखतां काळ लइ जायछे, अने सगां संबन्धीओ बेसी रहेछे; पण कोइ मरण समये मरणना भागी थता नथी. ॥ ४३ ॥ जीअंजलबिंदुसमं, संपत्तीओ तरंगलोलाओ। सुमिणयसमं च पिम्मं, जं जाणसुतं करिजासु ॥४४॥
आ जीन्दगी डाभना अग्रभाग उपर रहेला जलना बिन्दु समान अस्थिर छे. संपत्तिओ समुद्रना कलोल जेवी चंचळ छे, एटले के एक ठेकाणेथी बीजे ठेकाणे
* यथेह सिंह इव मृगं गृहीत्वा, मृत्युनरं नयति खल्वन्तकाले ।
न तस्य माता न पिता न भ्राता, काले तस्मिन् अंशधरा भवन्ति ॥४३॥ + जीवितं जलबिन्दुसमं, सम्पत्तयस्तरङ्गालोलाः ।
खासमं च प्रेम, यद् जानीयास्तत् कुरुष्व ॥ ४४ ।।
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