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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ४५ ॥ ***** www.kobatirth.org पिंणी. ते कालमानथी अवसर्पिणी प्रमाणे छे. अत्यंत दुःखरूप ते दुसमदुसमा नामे पहेलो आरो. ' यावत्' शब्दथी 'एगा दुसमा, एगा दुसमसुसमा, एगा सुसमदुसमा, एगा सुसमे ति आ पाठ जाणवो. आ छ आरानुं कालमान पूर्वे जणावेल छे ते प्रमाणे छे परंतु ऊंलटी रीते जाणवुं. (स० ५०) जीव, पुद्गल अने काल लक्षणरूप द्रव्यनी विविध धर्म विशेषोनी एकपणानी प्ररूपणा करी. हवे संसारी मुक्त जीव अने पुद्गलद्रव्य विशेषोना तथा नारक अने परमाणु आदिना समुदाय लक्षणरूप धर्म ' ratesari वग्गणा' आ प्रथम सूत्रथी आरंभीने 'एगा अजहनु क. सगुणलुक्खाणं पोग्गलाणं वग्गणे' ति आ छेल्ला सूत्र पर्यंत वर्गणाने कहे छेः गानेरइयाणं वग्गणा, एगा असुरकुमाराणं वग्गणा, चउवीसदंडओ जाव वैमाणियाणं वग्गणा । एगा भवसिद्धयाणं वग्गणा, एगा अभवसिद्धीयाणं वग्गणा, एगा भवसिद्धि [योणं] नेरइयाणं वग्गणा, एगा अभवसिद्धियाणं नेरइयाणं वग्गणा, एवं जाव एगा भवसिद्धियाणं वेमाणियाणं वग्गणा, एगा अभवसिद्धियाणं वेमाणियाणं वग्गणा । एगा सम्मद्दिट्ठियाणं वग्गणा, एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा, एगा सम्मामिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा । एगा सम्मद्दिट्ठियाणं नेरइयाणं वग्गणा, एगा मिच्छ१. उत्सर्पिणीना प्रथम आरानो काल एकवीश हजार वर्षांनो अने छेल्ला आरानो चार कोडाकोडी सागरोपमनो छे. २. बाबूवाळी प्रतिमां सिद्धियाणं पाठ छे अने आ० सा० वाळी प्रतिमां भवसिद्धि० पाठ छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ स्थाना ध्ययने वर्गणास्वरूपम् | ५१ सूत्रम् ॥ ४५ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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