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शींगडानी जेम, ' आ कर्त्ता, आ कर्म ' आवा प्रकारनो योग्य व्यवहार नहि थाय. वली जीव अने कर्मनो योग आदि रहित छे; ए बीजा (अनादि) पक्षनो स्वीकार करवाथी आत्मा अने कर्मनो वियोग नहि थाय. कारण ? अनादिपणुं होवाथी ज आत्मा अने आकाशना संयोगनी माफक अहिं समाधान करे छे-आदिमान् संयोग पक्षना दोषो, अमारावडे आदिमान् पक्ष न स्वीकाराथी ज निषेध करायेल छे; अने अनादि जीव-कर्मना योगने विषे अनादिपणुं होवाथी जीव-कर्मनो वियोग नहिं थाय एम तमे कहेलं ते अयुक्त छे; केमके संयोगनुं अनादिपणुं छते पण सुवर्ण अने पत्थर ( माटी )नी जेम बियोगनी उपलब्धि थाय छे-जणाय छे. भाष्यकार कहे छे:
जह वेह कंचणोवलसंजोगोऽणाइसंत इगओऽवि । वोच्छिज्जइ सोवायं, तह जोगो जीवकम्माणं॥ ६० ॥
जेम कांचन अने उपलनो अनादिकालनो चाल्यो आवेल संयोग पण, उपाय ( अग्नितापादि ) थी नाश पामे छे तेमजीव अने कर्मनो संयोग ( तप संयमादिथी ) नाश पामे छे. (६०) तेम बीज अने अंकुरनी परंपरानी जैम अनादि संताननो नाश देखाय छे. भाष्यकार कहे छे के:
अन्नतरमणिव्वत्तियकज्जं बीयंकुराण जं विहयं । तत्थ हओ संताणो, कुक्कुडियंडाइयाणं च ॥ ६१ ॥
जेम बीज अने अंकुरमांथी कोइ पण एक वस्तु, कार्यने उत्पन्न कयी सिवाय नाश पामे तो तेमां ( बीज - अंकुरमां ) संताननो नाश थाय छे. तेमज कुकडी ने इंडं, अने पुत्र ने पिता वगेरेमां पण समजवुं. (६१) (सू०९ )
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