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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX) अह अन्नो तो एवं गुणिणो न घडादयो वि पच्चक्खा । गुणमित्तम्गहणाओ, जीवम्मि कुतो विआरोऽयं? ॥ ४४ ॥ गुण-स्मृत्यादि-ना प्रत्यक्षपणाथी घडानी माफक गुणी जीवनो प्रत्यक्ष थाय छे. पूर्वपक्षगुणना प्रत्यक्षपणाथी गुणीनो प्रत्यक्ष थाय छे ए हेतु अनैकान्तिक छे, केमके आकाशनो गुण जे शब्द ते प्रत्यक्ष छे परंतु गुणी आकाशनो प्रत्यक्ष थतो नथी. उत्तरपक्ष-रूपादिनी माफक शब्द इंद्रियग्राह्य होवाथी आकाशनो गुण नथी परंतु पुद्गलनो गुण छ, माटे तमे कहेल के हेतु अनेकांतिक छे तेम नथी. गुणोर्नु प्रत्यक्षपणुं छते गुणीनुं प्रत्यक्षपणुं केम थाय? एम जो कहेता हो तो अमो पूछीए छीए के-गुणोथी गुणीने भिन्न मानो छे के अभिन्न ? जो अभिन्न होय तो ज्ञानादि गुणने ग्रहण करवा मात्रथी गुणी (आत्मा) साक्षात् ग्रहण थाय ज, जो गुणोथी गुणी भिन्न छ तो घट आदि गुणी तेना रूपादि गुणोनुं प्रत्यक्ष थवाथी जे ग्रहण थाय छे ते पण न थर्बु जोइए. जो आ प्रमाणे छे तो केवल जीवना अभावना ज विचार शाथी थाय छे ? (४२-४३-४४.) जेओ सर्व पदार्थसमूहना स्वरूपना आविर्भाव( प्रकाश )मां समर्थ ज्ञानीओ छे तेओने तो सर्वात्मभावे (सर्वथा ज) प्रत्यक्ष थाय छे. तेमज अनुमान प्रमाणवडे आत्मा जणाय छे ते आ प्रमाणे-आ शरीर विद्यमान कावडे भोग्यपणुं होवाथी भात. वस्त्रं वगैरेनी जेम करायेलुं छे. आकाशनुं फूल विपक्ष दृष्टांत छे. ते विद्यमान कर्ता जीव छे. शंका-ओदनना कर्तानी माफक १. आत्मा भोक्ता अने शरीर भाग्य छे. २. ए सपक्ष दृष्टांत छ. ३. आदान अने आदेयपणुं अर्थात् ग्राहक-ग्राह्य नहि होवाथी. XXKKAKKAKKAR KKKAKKAR XXXXXXXXX For Private and Personal use only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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