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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भ्रांत अने अभ्रांत केम घंटे ? एम पण तमे कहेवा माटे शक्तिमान हो तो अमे आ प्रमाणे कहीए छीए के - अवयवनी जेम अथवा नीलवर्णनी माफक अव्यभिचारीपणे तेमज प्रतिभासमान होवाथी अवयवी द्रव्य विद्यमान छे. आ हेतु असिद्धं नथी, कारण के जैम छे तेम प्रतिभासनो अनुभव थाय छे तेमज उक्त हेतु अनैकान्तिक अने विरुद्ध पण नथी, कारण के सर्व वस्तुनी व्यवस्था प्रतिभासने आधीन छे, अगर जो एम नहि मानो तो कोई पण वस्तु सिद्ध नहि थाय. पूर्वपक्षी कहे छे के- केवल अवयवी द्रव्य हो, पण आत्मा आत्मानो प्रत्यक्षादि [ प्रमाणो ]वडे साक्षात्कार न होवाथी विद्यमान नथी. ते आ प्रमाणे- आत्मा अतीन्द्रिय होवाथी प्रत्यक्षवडे ग्रहण करवा योग्य नथी, अनुमानग्राह्म पण नथी. लिंग ( हेतु ) अने लिंगी (पक्ष) ए बने नो साक्षात् संबंध देखवावडे अनुमान प्रमाणनी प्रवृत्ति थाय छे. आत्मा आगमप्रमाणवडे पण जणातो नथी, कारण के आगमोनो परस्पर विसंवाद [ मतभेद ] छे. समाधान-आ असाक्षात्कारता शुं ? ते एक पुरुषने आश्रित छे अथवा वधा पुरुषाने आश्रित छे ? जो एक पुरुषने आश्रित कहेशो तो तेथी वस्तु रहेते छते एक पुरुषाश्रित अनुपलभ्यपणानो संभव होवाथी आत्मानो अभाव सिद्ध थतो नथी. कोई एक पुरुषविशेषनुं घटादि वस्तुनो ग्राहक जे प्रमाण प्रवर्त्ततुं नथी, एटलुं ज कहेवाथी सर्वत्र अने सर्वकालमा घटादि अर्थ ग्राहक प्रमाणनो अभाव छे एम निर्णय करवा माटे तमे शक्तिमान नथी. प्रमाणनी निवृत्तिमां प्रमाणनुं प्रमेय कार्यपणुं होवाथी प्रमेय निवर्त्तन थतुं नथी. कार्य ( घटादि ) ना अभावमां कारण ( दंडादि )नो अभाव देखा तो नथी माटे अनुपलंभ हेतु अनैकांतिक दोषवाळो छे अने बधा पुरुषोने आश्रित अनुपलंभ पक्ष असिद्ध छे, माटे आ अनुपलंभ हेतु प्रक्षमां हेतुना अभाव ते असिद्ध. २ उपलब्धि, ४ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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