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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥३२७ xxxxxxxxxxxKXXXXXXXXXXXXXXXXX विज०, उरिमगेविजविमाणपत्थडे तिविहे पं० २०-उवरिमहेटिमगेविज. उवरिममज्झिमगेविज० ३ स्थानउवरिम २ गेविजविमाणपत्थडे । सू०२३२, जीवाणं तिट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकरमत्ताते चिणिंसु काध्ययने वा चिणिति वा चिणिस्संति वा, तं०-इस्थिणिव्वत्तिते पुरिसनिव्वत्तिए णपुंसगनिव्वत्तिते, एवं उद्देशः ४ चिणउवचिणबंधउदारवेय तह णिजरा चेव ।सू० २३३, तिपतेसिता खंधा अणंता पण्णत्ता, एवं प्रस्तटवर्ण नम् जाव तिगुणलवख। पोग्गला अणंता पन्नत्ता । सू० २३४॥ तिट्राणं समत्तं ततियं अज्झयणं समत्तं ॥ २३२___ मूलाधः-वेयकना विमानोना त्रण प्रस्तट (पाथडा) कहेला छे, ते आ प्रमाणे-हेटिमोवेयकविमान प्रस्तट, मध्यमग्रवे-13 यकविमान प्रस्तट अने उपरिम( उपरलो )ग्रैवेयक विमान प्रस्तट. हेष्टिमग्रैवेयकविमान प्रस्तट त्रण प्रकारे कहेल छे, ते आ २३४ प्रमाणे-हेहिमहे हिमवेयकविमान प्रस्तट, हेटिममध्यमग्रैवेयकविमान प्रस्तट अने हेहिमउपरिमंग्रेवयकविमान प्रस्तट. मध्यमवेयकविमानप्रस्तट त्रण प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणे-मध्यमहेटिमग्रेवयकविमान प्रस्तट, मध्यममध्यमवेयकविमान प्रस्तट, मध्यमउपरिमोवेय कविमान प्रस्तट, उपरिमोवेयकविमान प्रस्तट त्रण प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणेउपरिमहि हिमग्रेवयकविमान प्रस्तट, उपरिममध्यमवेयकविमान प्रस्तट, अने उपरिमउपरिमोवेयकविमान प्रस्तट (म० २३२) जीवो ए त्रण स्थानकवडे उपार्जन करेला पुद्गलो पापकर्मपणाए एकठा कर्या, करे छे अने करशे, ते आ प्रमाणेखीवेदवडे संचित करेला, पुरुषवेदवडे संचित करेला अने नपुंसकवेदवडे संचित करेला. एवी रीते-चयन-कर्मपुद्गलोनुं ग्रहण ॥ ३२७॥ सूत्राणि XXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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