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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxy क्षेत्रमा मारणांतिक समुद्घातथी जोडाईने ऊर्ध्वलोकमां क्षेत्र( त्रस )नाडीथी बहारना क्षेत्रमा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायपणाए जे उपजवाने योग्य छे, ते जीव हे भगवन् ! केटला समयवाळा विग्रहवडे उत्पन्न थाय ? उ०-हे गौतम ! त्रण समय अथवा चार समयवाळा विग्रहवडे उत्पन्न थाय छे." विशेषणवती( ग्रंथ )मां पण कधुं छे केसुत्ते चउसमयाओ, नथि गई उपरा विणिहिट्ठा । जुजइ यपंचसमया,जीवस्स इमा गई लोए॥२२८॥ सिद्धांतने विषे चार समयवाळी गतिथी उपर वक्रगति कहेली नथी, परंतु लोकमा जीवने आ पांच समयवाळी वक्रगति घटी शके छे. जो तमतमविदिसाए, समोहओ बंभलोगविदिसाए। उववजई गईए. सोनियमा पंचसमयाए ॥२२९॥ जे जीव, सातमी नरकभूमिनी विदिशामा मरणसमुद्घातथी ब्रह्मलोकनी विदिशामां उपजे छे ते चोकस पांच समयवाळी वक्रगतिवडे उत्पन्न थाय छे. उववायाभावाओ, न पंचसमयाहवान संतावि । भणिया जह चउसमया, महल्लबंधे न संतावि॥२३०॥ उक्त रीते जीवने उपजवाना अभावथी पांच समयो थता नथी, अथवा पांच समयो थाय छे छतां पण ( अपवादभूत होवाथी) कहेल नथी. जेम चार समयवाळी गति छतां पण मोटा प्रबंधम (विस्तारवाळा शास्त्रमा) कहेल नबी तेम अहीं पण जाणवू, आ हेतुथी कयुं छे के 'एगिंदियवजं' ति०-एकेंद्रिय छोडीने यावत वैमानिक पर्यतना जीयाने उत्कृष्टथी त्रण KKRKKKKKKKKKKXxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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