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________________ Shri Mahavir Jain Nadhana Kendra Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie www.kobatirth.org KAKKKKKAKXKXKXKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX मानवाथी आकाशादिने पण आत्म शब्दना व्यवहारनो प्रसंग आवशे, कारण के आकाश विगेरे पण पोताना पर्यायोमा सतत गमन करे छे. जो एम नहि मानीए तो आकाशादिमां पण अपरिणामत्ववडे अवस्तुपणानो प्रसंग आवशे. उत्तर-नैवम्एम नथी; केम के अतति सततं गच्छति' इत्यादि व्युत्पत्तिमात्रनुं निमित्तपणुं छे अने उपयोग ज प्रवृत्तिमा निमित्त छे तेथी जीव ज आत्मा छे पण आकाशादि आत्मा नथी. अथवा संसारीनी अपेक्षाए भिन्न भिन्न गतिओमां निरंतर जवाथी अने मुक्त्त( सिद्ध )नी अपेक्षाए भृतकालमा जे आत्मा हतो ते ज वर्तमानमा होवाथी आत्मा छे. तेनुं एकपणु कथंचित ज छ ते बतावे छे:-द्रव्यार्थपणे एकपणुं छे कारण के आत्मानुं एक द्रव्यपणुं छे अने प्रदेशार्थपणे तो आत्मानु असंख्य प्रदेशपणुं होवाथी अनेकपणुं छे. तेमां द्रव्यरूप अथेनो जे भाव ते द्रव्यार्थता, प्रदेशगुण अने पर्यायनी आधारता अर्थात् जे अवयवी ते द्रव्यपणुं छे. प्रकृष्ट-जेना के विभाग केवलीना ज्ञानथी पण न थाय ते प्रदेश अर्थात् निरवयव अंशरूप अर्थनो जे भाव ते प्रदेशार्थता, गुण अने पर्यायनी आधारतारूप अवयव लक्षण विशिष्ट अर्थपणुं जाणवू. शंका-अवयवी द्रव्य ज नथी. गधेडाना शीगडानी माफक द्रव्यनो असंभव होवाथी वक्ष्यमाण (कहेवाता) वे विकल्पवडे अवयवी द्रव्य नथी. कहे छ के-अवयवी द्रव्य अवयवोथी भिन्न छे के अभिन्न छे ? अभिन्न पक्ष तमे स्वीकारी शकशो नहि; कारण अभेद छते अवयवी द्रव्यनी जेम अवयवोर्नु पण एकपणु थाय अथवा अवयवनी जेम अवयवी द्रव्य- पण अनेकपणुं थाय. अन्यथा भिन्न पक्ष ज सिद्ध थाय छे, केम के विरुद्ध धर्मर्नु जे आभासन ते भेदन कारण छे. जो भिन्न पक्ष स्वीकारशो तो अवयवी द्रव्य अवयवोथी भिन्न छ तो ते सर्व अवयवोमा सर्वथा १. आकाशादि पोताना पर्यायोमा गमन करे छे, परंतु तेमां उपयोगनी प्रवृत्ति नथी. २. गुणपर्यायनो जे समुदाय ते प्रव्य. For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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