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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra EXEXXXX www.kobatirth.org टीकार्य :- 'तिविहा इडी' इत्यादि ० सात सूत्रो सुगम छे. विशेष कहे छे के-देव- इंद्रादिनी जे ऋद्धि-ऐश्वर्य ते देवऋद्धि, एबी रीते राजा - चक्रवती विगेरेनी ऋद्धि अने गणि-गच्छना अधिपति आचार्यनी ऋद्धि १, विमानोनी अथवा विमानलक्षण ऋद्धि, ते त्रीश लाख विमानरूप बाहुल्य ( अधिकपणुं ), मोटाई अने रत्न विगेरेनुं सुंदरपणुं ते विमाननी ऋद्धि. सौधर्मादि देवलोकने विषे बत्रीश लाख विगेरे विमाननी संख्यारूप बाहुल्य ( अधिकपणुं ) होय छे. कधुं छे केबत्तीस अट्ठवीसा, बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा । आरेण बंभलोगा, विमाणसंखा भवे एसा ॥२१७॥ त्रीश लाख, अट्ठावीस लाख, चार लाख, आठ लाख अने चार लाख विमान अनुक्रमे पहेला देवलोकथी आरंभीने यावत् पांचमा ब्रह्म नामना देवलोक सुधी होय छे. पंचास चत्तं छच्चेव, सहस्सा लंतसुक्कसहसारे । सयचउरो आणयपाण - एसु तिन्नारणच्चुयए ॥२१८॥ लांतकमा पच्चास हजार, महाशुक्रमां चालीश हजार, सहस्रारमां छ हजार, आनत अने प्राणतना मळीने चार सो तथा आरण अने अच्युत देवलोकमां बन्नेना मळीने त्रण सो विमानो छे. एक्कारसुत्तर, हेट्टिमेसु सत्तुतरं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तरविमाणा ॥ २१९ ॥ नववेकी हेली किमां एक सो ने अगियार, मध्यम त्रिकमां एक सो सात अने उपरली त्रिकमां एक सो विमानो छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *******************
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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