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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥३१ ॥
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- प्रसिद्ध छे,२ अस्थिमिजा-अस्थिना मध्यमा रहेलो रस,३ केशो-मस्तकना वाल, श्मश्रु-दाढी मूंछना वाळ,रोम-काव विगेरेना वाळ |
अने नखो प्रसिद्ध छे. केश, श्मश्रु,रोम अने नख आ बधा य प्रायः समानपणाथी (वृद्धि विगग्ना कारणथी) एक ज छे. माताना अंगो प्रायः आर्तव (रजस् ) परिणतिरूप छे.१ मांस जाहेर छे, २ शोणित-लोही अने ३ मस्तुलिंग-बाकीना मेद अने
काध्ययन फेफसा विगेरे. केटलाएक कपालना मध्यमा रहेलुं भेजें कहे छे. (सू० २०९) पूर्वोक्त स्थविरकल्पनी स्थिति अंगीकार करेलाने
उद्देश ४ विशिष्ट निर्जराना कारणो कहेवा अर्थे सूत्रकार कहे छे के
श्रमणतिहिं ठाणेहि समणे णिग्गंथे महानिज्जरे महापजवसाणे भवति तं०-कया णं अहं अप्पं वा बहुयं मनोरथवा सुयं अहिजिस्सामि, कया णमहमेकल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सामि, कया
वनम् णमहमपच्छिममारणंतितसंलेहणाझुसणाझुसिते भत्तपाणपडियाइ क्खिते पाओवगते कालं अणवकं
४२१०सूत्रम् खमाणे विहरिस्सामि, एवं स मणसा स वयसा स कायसा पागडेमाणे (पहारेमाणे ) निग्गंथे महानिजरे महापज्जवसाणे भवति, तिहिं ठाणेहि समणोवासते महानिजरे महापज्जवसाणे भवति, तं०-कया णमहमप्पं वा बहुयं वा परिग्गरं परिचइस्सामि १, कया णं अहं मुंडे भवित्ता आगारातो अणगारितं पव्वइस्सामि २. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणाझसणाझसिते भत्तपाण
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