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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सर्व वस्तु प्रतिसमये उत्पन्न धाय छे, नाश पामे छे अने नित्य छे. आ बन्ने ( नित्यानित्य ) प्रकारे वस्तुने स्वीकारवाथी सुख, दुःख, बंध अने मोक्षादिनो सद्भाव घटी शके छे. सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति अनुगम कह्यो तेत्री रीते स्वीकारेल सूत्रानो आश्रय करीने सूत्रानुगम, सूत्रालापकनिक्षेप, सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्ति, अनुगम अने नयो दर्शावेला छे. क्रमपूर्वक भाष्यकारनुं वचन आराध्युं छे स्वीकारेल छे ते भाष्यनुं वचन आ प्रमाणे: सुत्तं सुत्ताणुगमो, सुत्तालावगकओ य निक्खेवो । सुत्तप्फासियनिज्जुत्ति, नया य समगं तु वच्चंति ॥३९॥ गाथाना भावार्थ उपर कहेल छे. ए द्वारोनो विषय भाष्यकारे कल छे. होइ कयत्थो बोत्तुं, सपयच्छेयं सुअं सुयाणुगमो । सुत्ताला वगनासो, नामाइन्नासविनियोगं ॥ ४० ॥ सुत्तप्फासियनिज्जुत्ति - निओगो सेसओ पयत्थाई । पायं सो च्चिय नेगम - नयाइमयगोयरो, होइ ॥ ४१ (यु०) अस्खलितादि गुणयुक्त सूत्र अने तेनो पदच्छेद कहीने सूत्रानुगम कृतार्थ ( सफल ) थाय छे, नामादि निक्षेपनो संबंध मात्र कहीने सूत्रालापक निक्षेप सफल थाय छे अने शेष पदार्थ, पदविग्रह, चालना अने प्रत्ययवस्थानरूप व्याख्या सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्तिमां उपयोगी थाय छे. ते पदार्थादि प्रायः नैगमादि नयना अभिप्रायथी जणाय छे. पदार्थादि कहे छते ज नैगमादि नयोनी प्रवृत्ति छे. (४०-४१) एवी रीते दरेक सूत्रमां पोतानी मेळे अनुसरण करवुं. अमे तो कोई स्थाने कंडक संक्षेप अर्थने कहेशुं. हमणा जे भगवाने For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ****************************************************
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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