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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १५४॥ ४२स्थानका ध्ययने x उद्देशः४ जीवाजीववक्तव्यता ९५ सूत्रम् KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX अहिं तो धर्मना अधिकारथी ज समयादि स्थिति लक्षण धर्म-जीव अने अजीव संबंधी धर्म अने धर्मीना अभेदपणाथी जीव अने अजीवपणाए ज कहेवाय छे. तेमां सघळा य कालप्रमाणोमा आद्य (पहेला) परम सूक्ष्म, अभेद्य, अवयव रहित, उत्पल-कमलना सेंकडो पत्रना भेदनना उदाहरणवडे ओळखातो समय कहेवाय छे. ते समय- अतीत वगेरे कालनी विवक्षावडे बहुपणाथी बहुवचन छे, माटे सूत्रकार कहे-'समयाइ वा' इत्यादि० ' इति' शब्द समीप अर्थ बतावबामां अने 'वा' शब्द विकल्पार्थमां छे. असंख्याता समयना समुदायवाळी आवलिका, क्षुल्लक भवग्रहण कालना बसो ने छप्पन भागे छे [अर्थात् २५६ आवलिकानो एक क्षुल्लक भव थाय छ ]. ते सूत्रमा समयो अथवा आवलिकाओ छे. जे कालवस्तु छ ते सामान्यथी जीव छ, कारण के जीवनो पर्याय छे. पर्याय अने पर्यायवाळानो कथंचित् अभेद छे तथा अजीवोनोपुद्गलादिनो पर्याय होवाथी अजीव कहेवाय छे. मूलमां बे 'च' कार छे ते समुच्चय अर्थमा छे अने जे दीर्घपणुं छे ते प्राकृत शैलीने कारणे छे. प्रोच्यते-कहेवाय छे. जीवादिना व्यतिरेकथी (सिवाय) समय वगेरे नथी, ते कहे छे-जीव अने अजीवोनी सादि अने सपर्यवसानादि (अंत सहित ) वगेरे भेदवाळी जे स्थिति छे ते स्थितिना भेदो समय वगेरे छे. ते जीव अने अजीवनो धर्म छे. धर्म अने धर्मीनो अत्यंत भेद नथी, जो अत्यंत भेद होय तो एक अंशमात्र धर्म [वस्तुनो] जणाते छते प्रतिनियत (चोकस) धर्मीना विषयमा संशय ज नहिं थाय, कारण के ते धर्मीना अन्य धर्मोथी पण तेनो भेद अविशेषपणे छे. १. काल वस्तुत द्रव्य नथी कारण के ते पंचास्तिकायनो पर्याय छे, वर्तना लक्षण पर्याय सर्व द्रव्यमा सामान्य छे. तेने उपचारथी द्रव्य, व्यवहारनयवडे कहेल छे. xxxxxxxxxxx ॥१५४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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