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| विषे जंबूद्वीप प्रकरणमा 'अणाढिए चेव जंबुद्दीवाहिवई 'इति. आ वक्तव्यमा कहेवाना स्थानना बदलामा सुदर्शन
देवर्नु कथन करवू. (१). 'धायइसंडे दीवे इत्यादि० आ पश्चिमार्द्ध धातकीखंडनुं प्रकरण [ विषय ] पूर्वार्द्धनी माफक जाणी लेवू. आ ज कहे छ के 'जाव छब्बिहंपि काल' मित्यादि० विशेष कहे छ-'णवरं कूडसामली' त्यादि० धातकीखंडना पूर्वार्द्धमा उत्तरकुरुक्षेत्रने विषे धातकीवृक्ष कह्यो, अहिं तो महाधातकीवृक्ष कहेवो. बळी देवसूत्रमा त्यां (पूर्वार्द्धमा) बीजो देव सुदर्शन कहेल छे, अहिं तो [पश्चिमार्द्धमां] प्रियदर्शन कहेवो. पूर्वार्द्ध अने पश्चिमा मळवाथी संपूर्ण धातकीखंड द्वीप थाय छ, | तेनो आश्रय करीने वे स्थानक-'धायइसंडे गं' इत्यादिवडे कहे छे. बे भरत, पूर्वार्ध अने पश्चिमाधना जे दक्षिण दिशाना विभागमा छे ते वे विभागना भावथी ज वे कहेवाय छे. एवी रीते सर्वत्र छे. भरतक्षेत्र वगेरेनुं स्वरूप पूर्वे कहेलुं छे. 'दो देवकुरुमहादुमे तिचे कूटशाल्मली वृक्षो छे. ते बे वृक्षना वासी बे वेणुदेवो [सुपर्णकुमार जातिना] छे. 'दो उत्तरकुरुमहद्दमे ति० धातकीवृक्ष अने महाधातकी वृक्ष ए छे. ते वृक्षना वासी सुदर्शन अने प्रियदर्शन नामना बे देवो छे. (२). चुल्लहिमवान वगेरे छ वर्षधर पर्वतो, तथा शब्दापाती, विकटावाती ये गंधापाती अने मालवत्पर्याय नामना वृत्तवैताढय पर्वतो अने तेना निवासी अनुक्रमे स्वाती, प्रभास, अरुण अने पद्मनाभ नामना देवोने बब्बे संख्यावडे युक्त क्रमथी बब्बे कहेल छे. 'दो मालवंत 'त्ति० उत्तरकुरु क्षेत्रथी पूर्वदिशामा रहेल बे मालवंत नामना गजदंत पर्वतो छ. ते गजदंत पर्वतोथी भद्रशाल | वन, तेनी वेदिका अने विजयथी आगळ, सीतानदीना उत्तर किनारा पर रहेल, दक्षिण अने उत्तरमा लांबा, बे चित्रकूट पर्वत
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समयमा
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