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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ।। १४२ ।। www.kobatirth.org ऐरवत यावत् बे मेरु अने वे मेरुपर्वतनी चूलिका छे. पुष्करवरद्वीपनी वेदिका बे गाउनी ऊंची कही छे. (एवी रीते ) बधाय द्वीप तथा समुद्रोनी पण वेदिकाओ वे गाउनी ऊंची कहेली छे. (२) (सू० ९३ ) टीकार्थः-'जंबू' इत्यादि० सूत्र सुगम छे. विशेष कहे छे के जंबूद्वीपरूप नगरने फरता कोट (गढ) नी जेवी जगती छे, ते वज्र ( मणि ) मय छे, आठ योजननी ऊंची, उपर चार योजननी पहोळी अने नीचे ( मूलमां ) बार योजननी पहोळी छे. ते जगती बे गाउ ऊंचा, पांचसो धनुष्य पहोळा अने विविध रत्नमजालें कटकवडे घेरायेली छे. ते जगती उपर जे वेदिका | छे तेने पद्मवरवेदिका कहे छे. ते बे गाउनी ऊंची अने पांचसो धनुष्यनी विस्तारवाळी छे. ते गवाक्ष अने सुवर्णनी घुघरीवाळी घंटा सहित, देवोने बेसवुं, सूनुं, मोहित थवं वगेरे क्रीडाना स्थानरूप तथा वे पडखे वनखंड (बगीचा) बाळी छे. जंबूद्वीपना वर्णन पछी लचणसमुद्रनी वक्तव्यता कहे छे-'लवणे ण' मित्यादि० आ सुगम छे. विशेष ए के चक्रवाल- गोळनुं पहोळाईपणुं ते चक्रवालविष्कंभ जाणवुं. लवणसमुद्रनी वेदिकानुं सूत्र जंबूद्वीपनी वेदिकाना सूत्रनी जेम कहेवुं. (सू०९१). क्षेत्रना प्रसंगथी लवणसमुद्रनी वक्तव्यता पछी धातकी खंडनी वक्तव्यता ' धायइ संडे दीवे' विगेरे सूत्रथी आरंभीने वेदिका सूत्र पर्यंत कहे छे ते सुगम छे. विशेष ए के धातकी खंडनुं प्रकरण पण, जंबूद्वीप अने लवणसमुद्र छे मध्यमां जेने एवा वलय (चूडी) आकारे धातकीखंडने आलेखी (चीत्रीने ) जंबूद्वीपनी माफक हिमवान आदि वर्षधरपर्वताने उभयथी - पूर्व तथा पश्चिम विभागडे भर अने हैमवत वगेरे क्षेत्रोने स्थापीने पूर्व अने पश्चिम दिशामां वलयनी पहोळाईना मध्यमां मेरुपर्वतनी कल्पना १. जाळीवाळो गोख, २ मेरुपर्वत पूर्व दिशामां अने बाजो पश्चिममां होय छे, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 0 २ स्थान काध्ययने उद्देशः ३ अपरवर्णनम् |९१-९२ ९३ सूत्राणि ॥ १४२ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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