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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जंबूद्दीवरस णं दीवस्स वेइआ दो गाउयाई उद्धं उच्चतेणं पन्नत्ता । लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते । लवणस्स णं समुद्दस्स वेतिया दो गाउयाइ उद्धं उच्चणं पन्नता । सू० ९१, धायइसंडे दीवे पुरच्छिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पन्ना बहुमतुल्ला जाव भरहे चेत्र एखए चैत्र, एवं जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियन्त्रं जाव दो वासु मया छविहंपि कालं पञ्चणुभवमाणा विरहंति तं० भरहे चेव एरखते चेव, णवरं कूडसामली चेव धायइरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे सुदंसणे चेव (१), धाततीसंडदीवपञ्चच्छिमद्धे णं मंदरस्त पव्त्रयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पन्नत्ता बहु० जाव भरहे चेत्र एखए चेव छविपि कालं पचणुभवमाणा विहरंति भरहे चेत्र एखए चेत्र, णवरं कूडलामली चेव हाती चैव देवा गरुले चेव वेणुदेवे पिपदंसणे चैत्र, धायइसंडे णं दीवे दो भरहाई दो एवाई दो हेमवयाई दो हेरन्नत्रयाइं दो हरिवालाई दो रम्मगवासाई दो पुब्वविदेहाई दो अवरविदेहाई दो देवकुराओ दो देवकुरुमहदुमा दो देव कुरुमहदुमवासी देवा दो उत्तरकुराओ दो २४ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ****************
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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