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माणवक ४६, कास ४७, स्पशे ४८, धुर ४९, प्रमुख ५०, विकट ५१, विसंधि ५२, नियल ५३, पहल ५४, झटितालक ५५, अरुण ५६, अगिल ५७, काल ५८, महाकाल ५९, स्वस्तिक ६०, सौवस्तिक ६१, वर्धमान ६२, पुष्पमानक ६३, अंकुश ६४, प्रलंब ६५, नित्यालोक ६६, नित्योद्योत ६७, स्वयंप्रभ ६८, अवभास ६९, श्रेयंकर ७०, क्षेमकर ७१, आभंकर ७२, प्रभंकर ७३, अपराजित ७४, अरज ७५, अशोक ७६, विगतशोक ७७, विमल ७८, वितत ७९, वित्रस्त ८०, विशाळ ८१, साल ८२, सुव्रत ८३, अनिवृत्त ८४, एकजटी ८५, द्विजटि ८६, करकरिक ८७, राजगल ८८, पुष्पकतु ८९ | अने भावकेतु ९०-आ सर्व ग्रहो बब्बे जाणवा. (४) (सू०९०)
टीकार्थ:-'जंबुद्दीव' इत्यादि सूत्रद्वयं, 'पभासिंसु वत्ति प्रकाश करता हता, प्रकाशवा योग्यने प्रकाश करे छ अने प्रकाश करशे. बन्ने चंद्र सौम्य (शांत) प्रकाशवाळा होवाथी तेओर्नु प्रभासनपणुं कयु अने बन्ने सूर्यने तीक्ष्ण किरणपणुं होवाथी तपाबता हता, एम ज तपावे छे अने तपावशे. आ हेतुथी वस्तुनुं तपq का, आ त्रण कालमा प्रकाशना कथनवडे सर्वकाल पर्यंत चंद्रादि भावोर्नु अस्तिपणुं कडं, आ कारणथी ज कहेवाय छ-'न कदाचिदनीदृशं जगदिति० क्यारे पण आना जेवू जगत न हतुं एम नहि (पण हमेशा छ,) अथवा विद्यमान जगतनो कर्त्ता छे एम कल्पना करवी ते योग्य नथी, कारण के तेने माटे प्रमाण नथी. शंका-सन्निवेश विशेषवाळू जे द्रव्य ते कारणपूर्वक बुद्धिमान् पुरुषवडे घडानी जेम जोवायेल छ, ते सनिवेश विशेषवाळा पृथ्वी, पर्वत वगेरे छे. जे बुद्धिमान छे ते आ ईश्वर जगतनो कर्त्ता छे. समाधान-एम नथी. सन्निवेश-विशेषवाळो वल्मीक (राफडो) छते पण तेमां बुद्धिमान पुरुषना कारणपणानुं जोवापणुं (अर्थात् जगतनो कचों ईश्वर
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