SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Nadhana Kendra wwwkobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KXXXXXXKXKAKXXXXXXXXX KAEXKKKKX. चोथा आरा समान अनुभावने मनुष्यो हमेशां अनुभवे छे. 'जंबूढ़ीवे ' इत्यादि० 'छब्विहंपि' त्ति० सुषमसुषमादिक उत्सर्पिणी अवसर्पिणीरूप छ आरानो अनुभव भरत, ऐवतने विषे मनुष्यो अनुभवे छे. १८. (सू० ८९) अनंतर जंबूद्वीपने विष काललक्षण, द्रव्यना पर्याय विशेषो करा, हवे तो जंबूद्वीपमा ज कालपदार्थने प्रगट करनार ज्योतिष्कोनी वे स्थानकना अनुपातवडे प्ररूपणा करे छे. जंबुद्दीवे दीवे दो चंदा पभासिंस वा पभासंति वा पभासिस्संति वा, दो सूरिआ तर्विसु वा तंवति वा तविस्संति वा, दो कत्तिया, दो रोहिणीओ.दो मगासराओ, दो अदाओ, एवं भाणियव्वं, (गाथा)-कत्तिये रोहिणि मगसिर, अर्दा य पुणव्वसूं अ पूसो य । तत्तोऽवि अस्सलेसाँ, महाँ य दो फग्गुणीओ य ॥१॥ हत्थो चित्ती साई, विसाही तहय होति अणुराही ।जेट्ठी मूलो पुवा य, आसाढा उत्तरों चेव ॥२॥ अभिईसवणैधणिट्ठौं सयभिसयों दो य होंति भद्दवैयाँ । रेवति अस्सिणि भरणी नेतव्वा आणपुव्वीए ॥३॥ एवं गाहाणुसारणं णेयव्वं जाव दो भरणीओ [१], दो अग्गी, दो पयावती, दो सोमा, दो रुदा, दो अदिती, दो बहस्सती, दो सप्पी, दो पीती, दो (K**** For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy