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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie श्रीस्थानागसूत्र सानुवाद ॥१२५॥ २ स्थानकाध्ययने उद्देशः३ वर्षधरादि स्वरूपम् ८७ सूत्रम् KKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX कोई स्थळे (सूत्रमा ) वस्तुना एक देश- ग्रहण अने कोई स्थळे समस्त वस्तुनुं ग्रहण कराय छे, (अने केटलाएक सूत्रो) कारणवशात् उत्क्रम (क्रम वगर ) अने क्रमपूर्वक होय छे, माटे सूत्रनी विचित्र गति-पद्धत्ति छ. कूटना संग्रहनी गाथाओ नीचे प्रमाणे छ वेयडू ९ मालवंते ९, विज्जुप्पह ९ निसह ९ णीलवंते य ९। णव णव कूडा भणिया, एकारस सिहरि ११ हिमवंते ११ ॥ ५९ ॥ रुप्पि ८ महाहिमवंते ८, सोमणसे ७, गंधमायणनगे य ७। अट्ठ? सत्त सत्त य, वक्खारगिरीसु चत्तारि ॥६॥ चोत्रीश दीर्घवैताढ्य, माल्य वान, विद्युत्प्रभ, निषध अने नीलवान-आ दरेक पर्वतमा नव-नव कूटो कहेला छे. शिखरी अने लघुहिमवान पर्वतमा इग्यार-इग्यार कूट छे. रुक्मी अने महाहिमवान पर्वतमा आठ-आठ अने सौमनस तथा गंधमादन । पर्वतमां सात-सात कूट छे. सोळ वक्षस्कार पर्वतोमां चार-चार कूट कहेल छे. 'जंबू' इत्यादि० महाहिमवान पर्वतमा आठ कूट छ-१ सिद्धकूट, २ महाहिमवान, ३ हैमवत, ४ रोहिता, ५ ही, ६ हरिकांता, ७ हरि अने ८ वैडूर्य, बे कूटनुं ग्रहण करवानुं कारण कहेवाई गयुं छे. ' एव' मित्यादि० एवं शब्दथी 'जंबू' इत्यादि० अभिलाप जाणवो. निषध वर्षधर पर्वतमां-१ सिद्ध, २ निषध, ३ हरिवर्ष, ४ प्राग्विदेह, ५ हरि, ६ धृति, ७ XXXXX XXXXXX-XXXXXX ॥१२५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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