SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX (६), वात, पित्त विगेरेथी हानि थाय छे ते निवृद्धि. 'निवृद्धि' शब्दमा 'नि' शब्दनो अर्थ अभाव छे. 'निवरा कन्या'-पतिना अभाववाळी कन्यानी माफक. (७), वैक्रियलन्धिवाळा(मनुष्य-तियंचो)ने विकुर्वणा होय छे. (८), गतिपर्याय-चालवू अथवा मरीने गत्यंतरमां गमन करवारूप अथवा वैक्रियलब्धिवाळो गर्भमांथी नीकळीने प्रदेशोबडे बहार संग्राम करे छे ते गतिपर्याय. श्री भगवतीसूत्रमा कयु छे-'जीवे णं भंते! गभगए समाणे जेरइएसु उववलेजा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जे जा अत्थेगइए नो उववजेजा, से केणद्वेणं० ?, गोयमा ! से णं सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए विउविअलीए पराणीयं आगतं सोचा णिसम्म पएसे निच्छुभइ २ वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहन्नइ २ चाउरंगिणिं सेणं विउब्वइ २ चाउरंगिणीए सेणाए पराणीएणं सद्धिं संगाम संगामेई । त्यादि. [प्रश्न] हे भदंत ! जीव गर्भमा रह्यो थको नारकोमा उत्पन्न थाय ? [ उत्तर ] हे गौतम ! कोई एक उत्पन्न थाय अने कोई एक उत्पन्न न थाय. [प्र०] ते शा माटे एम कहो छो ? [उ०] गौतम! ते संज्ञीपंचेंद्रिय, सर्व पर्याप्तिवडे पर्याप्तक, पर-अन्यनी सेनाने आवेली सांभळीने, विचारीने वीर्यलब्धिवडे अने वैक्रियलब्धिवडे प्रदेशोने बहार काटे, काढीने वैक्रियसमुद्घातवडे नवनि पुद्गलोने ग्रहण करे छे, ग्रहण करीने चार अंगवाली सेनानी विकुर्वणा करे अने विकुर्वणा करीने चार अंग १. प्रत्यंतरमा निर्वृद्धि' शब्द छे अने त्यां निरुदरा कन्या- दृष्टांत आपेल छे. त्या निर शब्द अभावार्थक छे. अथवा निर्धनो राजा पण कहेवाय छे. XxxxxxxxxXXXXXXXXxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Lise Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy