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* तिष्कोनुं अने वैमानिकोन. (३), वे प्रकारना जीवोनी गर्भने विषे व्युत्क्रांति-उत्पत्ति कहेल छ, ते आ-मनुष्योनी अने पंचोंद्रिय
तिर्यग्योनिकोनी. (४), बे प्रकारना गर्भस्थ जीवोने आहार कहेल छ, ते आ-मनुष्योने अने पंचेंद्रियतिर्यचयोनिकोने. (५), वे प्रकारना गर्भस्थ[ गर्भमा रहेलाओना शरीर ]नी वृद्धि कहेल छ, ते आ-मनुष्योनी अने पंचेंद्रियतिर्यचकोनी. (६), एवी रीते निवृद्धि-शरीरनी हानि. (७), विकुर्वणा. (८), गतिपर्याय-गर्भमांथी बहार जवु. (९), समुद्घात-मारणांतिकादि. (१०), कालवडे करायेली(गर्भनी) अवस्था. (११), गर्भथकी नीकळवू-जन्म. (१२), मरण. (१३), जाणवा. बेने चामडीवाळा संधिना बंधनो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-मनुष्योने अने पंचेंद्रियतियचोने. (१४), बे शुक्र( वीर्य ) अने शोणित( रुधिर )वडे उत्पत्तिवाळा कहेल छे, ते आ-मनुष्यो अने पंचेंद्रियतियचो. (१५), बे प्रकारे[ जीवनी ] स्थिति कहेली छे, ते आ-कायस्थिति अने भवस्थिति. (१६), बेनी कायस्थिति कहेली छे, ते आ-मनुष्योनी अने पंचेंद्रियतिर्यचोनी. (१७), बेनी भवस्थिति कहेली छ, ते आ-देवोनी अने नारकोनी. (१८), चे प्रकारे आयुष्य कहेल छे, ते आ प्रमाणे-काळप्रधान आयुष्य अने भवप्रधान आयुष्य. (१९), बेनो अद्धायु-काळप्रधान आयुष्य कहेल छे, ते आ-मनुष्योने अने पंचेंद्रियतिर्यचोने. (२०), बेनुं भवप्रधान आयुष्य कहेल छे, ते आ-देवोनुं अने नारकोन. (२१), वे प्रकारे कर्म कहेल छे, ते आ-प्रदेशकर्म अने अनुभव कर्म.(२२), वे यथायु (जेवी रीते बांध्यु होय तेवी रीते आयुष्य पाळे छ-भोगवे छे) कहेल छे, ते आ-देवो अने नारको. (२३), बेनुं आयुष्य संवर्तक(उपक्रमवाळ) कहेल छे, ते आ-मनुष्योनुं अने पंचेंद्रियतियंचोर्नु (२४).
टीकार्थः-आ सूत्रो मुगम छे. विशेष ए के-'दोण्हं ति० चे प्रकारना जीव स्थानकनुं उत्पन्न थर्बु ते उपपात. गर्भ अने संमूर्छन
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