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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अस्थिानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥११२॥ २ स्थानका ध्ययन उद्दशः३ ज्ञानाधाचाराः प्रतिमा ज्ञान, ते संबंधी काल वगेरे आठ प्रकारनो आचार ते ज्ञानाचार. कयु छकाले विणए बहुमाणे, उवहाणे चेव तहय निहवणे।वंजणमत्थ तदुभए,अट्टविहो नाणमायारो ॥३२॥ (१) श्रुतना कालमा भणवू ते कालाचार, (२) विनयपूर्वक भणq ते विनयाचार, (३) अंतरंग प्रीतिपूर्वक भणq ते बहुमानाचार, (४) जे तपबडे सूत्रादिक उप-नजीक धीयते-कराय छे ते उपधानाचार, (५) तथा अनिहवण एटले सूत्रादिनु अनपलाप-उत्थापन करवू नहिं, (६) शुद्ध सत्र पाठ जेम होय तेम बोलवू ते व्यंजनाचार, (७) सूत्रनो यथार्थ अर्थ करवो ते अर्थाचार अने (८) सूत्र तेमज अर्थ उभयर्नु यथार्थ कथन करवु ते तदुभयाचार-आ प्रमाणे ज्ञानना आठ आचार छे. (१), नोज्ञानाचार-ज्ञानथी विलक्षण ते दर्शनादि आचार, दर्शन एटले सम्यक्त्व, तेना निःशंकितादि आठ प्रकारना आचार छे. कयुं छे:णिस्संकिय निकंखिय, निवितिगिच्छा अमूढदिट्ठीय। उववूह थिरीकरणे, वच्छल्लपभावणे अट्ट ॥३३॥ (१)निग्रंथ प्रववचनमा शंकानो अभाव ते निःशंकित, (२) अन्य दर्शनने ग्रहण करवानी इच्छानो अभाव ते निष्कांक्षित, (३) धर्मना फलना संदेहनो अभाव ते निर्विचिकित्सा, (४) तत्त्वार्थमा मृढदृष्टिनो अभाव ते अमूढदृष्टि, (५) गुणवाननी प्रशंसापूर्वक गुणनी वृद्धि करवी ते उपबृंहा, (६) धर्मथी चलित थनारन स्थिर करवु ते स्थिरीकरण, (७) साधम्मिकोनी सेवा-भक्ति ते वात्सल्य अने (८) जिनशासननी प्रभावना-उद्योत करवो. आ आठ आचार दर्शनना छे. (२), नोदर्शनाचार ते चारित्रादि. चारित्राचार समिति अने गुप्तिरूप आठ प्रकारे छे. कबुं छे: सामायिक XXXXXKKKKAKKAKKK XXXXXXXXXXXXXX ८४ सूत्रम् ॥११२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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