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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥११॥
ध्ययने १ सूत्रम्.
समास (विग्रह) करवो, ५ पछी विचार-तर्क (शंका ) करवो, ६ पछी दृषणने दूर करवू (शंकानुं समाधान ) ते प्रत्यवस्थान, ते पण नयोना मत विशेषोवडे करवू. एम दरेक मूत्रनुं व्याड्यान करवू. तेमां सूत्र एटले संहिता ते कहेवायेल छे, केमके | सूत्रानुगम संहितारूप छे. कयु छे के-"होई कयत्यो वोत्तुं, सपयच्छेयं सुयं सुयाणुगमो” इति. सूत्रानुगम पदच्छेद सहित सूत्रने कही कृतार्थ थाय छे. अस्खलितादि गुण सहित उच्चारेल सूत्रमा केटलाएक अर्थो डाह्या पुरुषोने समजायेल ज छे. आ कारणथी संहिता व्याख्यानो भेद थाय छे अने न जाणेल अर्थने जाणवा माटे पदादि, व्याख्याना भेदो प्रवर्ते छे. त्यां व्याख्या भेदमा-श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम्' इति आवी रीते पदोनी व्यवस्था करी त्यारे सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेपनो अवसर छे. तेमां आ व्यवस्था छे. जत्थ उजं जाणेज्जा, निवखेवं निविखवे निरवसेसं । जत्थवि यण जाणेज्जा, चउक्कयं निविखवे तत्थ॥२५
ज्यां जे (जेटला) निक्षेपा जाणी शकाय त्यां ते (तेटला) नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव वगेरे निर्विशेष (समस्त) निक्षिप्त करवा, अने ज्यां वधारे न जाणी शकाय त्यां चार निक्षेपा ओछामा ओछा अवश्य स्थापन करवा. तेमां नामश्रुत अने स्थापनाश्रुत प्रतीत छे. उपयोग रहित भणनारनुं सूत्र अथवा पत्रक (पानां) अने पुस्तकमा रहेढुं-लखेलु ते द्रव्यश्रुत छे अने भावश्रुत तो श्रुतना उपयोगवाळाने होय छे. अहिं श्रोत्रंद्रियद्वारा थयेल उपयोगलक्षणरूप भावश्रुतवडे
१. पत्रक अने पुस्तकमा लखेलुं सूत्र भावश्रुतर्नु कारण होवाथो ते द्रव्यश्रुत छे.
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