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'नेरइयाणमित्यादि० आ सूत्र प्रायः सुगम छे. विशेष कहे छ:-'तत्थगयावि अन्नत्थगयावि' एवी रीते अभिलापवडे दंडक, यावत् पंचेंद्रियातयंच सुधी जाणवो. आ कारणथी कहे छे-' जावे 'त्यादि० मनुष्योमा वळी अभिलाप विशेष जाणवा योग्य छ, जेम ' इहगतावि एगइया' इति. सूत्रकार-गणधरमहाराजा पण मनुष्य हता, आ कारणथी परोक्षरूप अनासन्न(दूर )ना कथनभूत 'तत्र' शब्दने मूकीने मनुष्य-सूत्रमा 'इह ' एवा शब्दनो निर्देश कर्यो छे, कारण के मनुष्यभवना स्वीकारपणाए प्रत्यक्षासन्नवाचक इदम् शब्दनो विषय छे. एटला ज माटे कहे छे-'मणुस्सवज्जा सेसा एक्कगम' त्ति० शेष एटले व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिको सरखा अभिलापवाला छे. शंका-पहेला मूत्रमा ज ज्योतिष्क अने वैमानिक देवोनो विवक्षित अर्थ कहेल होवाथी अहिं फरीने ज्योतिष्कादि देवोर्नु कथन करवावडे शो हेतु छे ? समाधान-प्रथम सूत्रमां अनुष्ठान(अनशनादि क्रिया)ना फळने देखाडवाना प्रसंगवडे भेद(विशेष)थी कहेल छे. अहीं तो दंडकना क्रमवडे सामान्यथी जणावेल होवाथी दोष नथी. अहिं देखाय छे ते ते सूत्रमा विशेषy कथन होवा छतां पण सामान्यनुं कथन छे, सामान्यना कथनमां तो विशेषतुं कथन होय छे (२). त्यां रह्या थका वेदनाने अनुभवे छे एम कहेलुं छे, आ कारणथी नारकादिनी गति अने आगतिनुं निरूपण करता थका कहे छे। नेरतिता दुगतिया दुयागतिया पं० २०-नेरइण नेरइएसु उववज्जमाणे मणुस्सेहिंतो वा पंचिं* दियतिरिक्खजोणिएहितो वा उववज्जेजा, से चेव णं से नेरइए णेरइयत्तं विप्पजहमाणे मणुस्सत्ताए
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