SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX-X-XXXXX X( एकेंद्रियनी अपेक्षाए) विशेष छे. 'पंचेंदिए' त्यादि० पंचेंद्रियतिथंच अने मनुष्योने वळी हाडकां, मांस, रुधिर, स्नायु अने शिरा विशेष छे. (२), बीजी रीते चोवीस दंडकवडे शरीरनी प्ररूपणा कहे छ:-'विग्गहे' त्यादि० विग्रहगति-चक्रगति, ज्यारे विषमश्रेणीमा रहेल उत्पत्तिस्थान प्रत्ये जबानुं होय छे त्यारे जे वक्र गति थाय तेने प्राप्त थयेल ते विग्रहगतिसमापन्न जीवो कहेवाय छे. तेओने बे शरीर होय छे. अहीं तैजस अने कार्मणना भेदबडे विवक्षा छे. एवी रीते चोवीश दंडक जाणवा. शरीरना अधिकारथी शरीरनी उत्पत्तिने दंडकवडे निरूपण करता कहे छे:-' नेरइयाण मित्यादि० स्पष्ट छे, परंतु रागद्वेषथी उत्पन्न थयेल कर्मवडे जे शरीरनी उत्पत्ति तेनो रागद्वेषवडे ज व्यवहार कराय छे, कारण के कार्यमां कारणनो उपचार कराय छे. 'जाव वेमाणियाणं' ति० एम यावत् वैमानिकदंडक पर्यंत जाणवू. शरीरना अधिकारथी शरीरनुं निवर्तनसूत्र पण एवी रीते जाणवू. विशेष ए छे के-उत्पत्ति ते शरूआत मात्र अने निर्वर्तना ते पूर्ण करवू. शरीरना अधिकारथी शरीरवाळानी बे राशिवडे प्ररूपणा कहे छे–' दो काए' त्यादि० त्रसनामकर्मना उदयथी त्रास पामे छे ते त्रस, तेओनी काय-राशि ते त्रसकाय अने स्थावरनामकर्मना उदयथी स्थिर रहेवाना स्वभाववाळा ते स्थाबरो, तेओनी राशि ते स्थावरकाय, त्रस अने स्थावरकायनी द्विपणानी प्ररूपणा माटे 'तसकाये' त्यादि बे सूत्र सुगम छे. (३) (सू० ७५) पूर्वना सूत्रमा शरीरवाळा भव्य जीवो कह्या. आहिंथी भव्य विशेपोने जे जेम करवाने योग्य छे ते तेम वे स्थानना संबंधवडे कहे छ दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पव्वावित्तए-पाईणं चेव उदीणं XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy