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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद
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अने केवलदर्शन छे जेने ते केक्ली (१०), 'छउमत्थे त्यादि स्वयंबुद्ध वगेरेनुं स्वरूप पूर्वनी माफक जाणवु (११), 'सयंबुद्धे'
1४२स्थानकात्यादि नव सूत्रो गतार्थ छ एटले पूर्व कहेला अर्थवाळा छे. (१२ थी १६). (सू०७२) संयम कह्यो, ते जीव अजीवविषयवाळो
ध्ययने होवाथी पृथ्वी विगेरे जीवोना स्वरूपने 'दुविहा पुढवी'त्यादि अख्यावीश सूत्रोवडे कहे छे
उद्देशः १ दुविहा पुढविकाइया पं० २०-सुहुमा चेव बायरा चेव (१), एवं जाव दुविहा वणस्सइका
पृथव्यादि
नां परिणाइया पं० त०-सहमा चेव बायरा चेव (२-५), दुविहा पुढविकाइया पं०२०-पज्जत्तगा चेव
मेवरी | अपजत्तगा चेव (६), एवं जाव वणस्सइकाइया (७-१०), दुविहा पुढविकाइया पं० २०- ७३ सूत्रम्
परिणया चेव अपरिणया चेव (११), एयं जाव वणस्सइकाइया (१२-१५), दुविहा दव्वा पं०
तं०-परिणता चेव अपरिणता चेव (१६), दुविहा पुढविकाइया पं० २०-गतिसमावन्नगा * चेव अगइसमावन्नगा चेव (१७), एवं जाव वणस्सइकाइया (१८-२१), दुविहा दव्वा पं०
तं०-गतिसमावन्नगा चेव अगतिसमावन्नगा चेव (२२), दुविहा पुढविकाइया पं० तं०| अणंतरोगाढा चेव परंपरोगाढा चैव (२३), जाव दव्वा० ( २४-२८) । सू० ७३
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